“परिवार को बचाना है तो बहू-बेटी में फर्क करना छोड़ना होगा” – रमेश गुगलिया

पल पल राजस्थान /महावीर व्यास

मोखुन्दा। जैन धर्म के संस्कारों की जितनी सराहना की जाए उतनी ही कम है। जैन मुनियों के प्रवचनों, संयम और आध्यात्मिक जीवन से प्रेरणा लेकर समाजसेवा से जुड़े रमेश गुगलिया (निवासी मोखुंदा, हाल मुकाम सूरत) ने हाल ही में एक आत्मीय वार्ता में परिवार और रिश्तों पर बेहद संवेदनशील और सटीक विचार साझा किए।

गुगलिया ने कहा, “परिवार टूटने का सबसे बड़ा कारण है सहनशक्ति की कमी और गलत सलाहों का असर। जब बहू हर बात अपनी मां या बहन से पूछकर करती है, और मां उसे पलटकर जवाब देने की सलाह देती है, तब परिवार का संतुलन बिगड़ने लगता है। उसी प्रकार, अगर सास हर छोटी बात पर टोका-टाकी करती है या बहू को ताना देती है, तो भी दूरी बढ़ती है। उन्होंने कहा कि अक्सर ससुराल और पीहर दोनों तरफ के लोग बहू-बेटी के बीच कान भरने का काम करते हैं। “छोटी-छोटी बातें बड़ी हो जाती हैं और रिश्तों में दरार डाल देती हैं।

बहू को भी सास को मां की तरह समझना होगा और सास को भी बहू को बेटी की तरह,” उन्होंने कहा। रमेश गुगलिया ने एक उदाहरण देते हुए कहा, “जैसे छिपकली की पूंछ टूटती है तो दर्द दोनों को होता है – पूंछ को भी और छिपकली को भी। उसी तरह जब परिवार टूटता है, तो दोनों पक्षों को पीड़ा होती है। उन्होंने सभी माता-पिता से अपील की कि अपनी बेटियों को समझाएं कि वे अपने ससुराल को अपना घर माने और हर बात मायके में जाकर न बताएं।

“आपकी बेटी किसी की बहू है, और आपकी बहू किसी की बेटी। दोनों को बराबर समझो, तभी परिवार बच सकते हैं,” उन्होंने कहा। गुगलिया का यह संदेश समाज के लिए एक आत्मचिंतन है कि आज जब परिवारों में दरारें बढ़ रही हैं, तब जैन धर्म जैसे संयमित जीवन दर्शन और संतुलित सोच की सबसे ज्यादा ज़रूरत है।

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