लखन शर्मा @ पल पल राजस्थान

शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी का उदयपुर और सलूम्बर दौरा महज़ एक धार्मिक कार्यक्रम में शिरकत करना नहीं था, बल्कि यह मेवाड़-वागड़ की जर्जर हो चुकी राजनीति पर सीधा कटाक्ष था। मारवाड़ की ठेठ माटी का यह जुझारू युवा नेता जिस तरह अपनी तेज़तर्रार बोली और सादगी से मेवाड़ के युवाओं में अमिट छाप छोड़ रहा है, उसने स्थानीय राजनीति के पुराने धुरंधरों को सकते में डाल दिया है।
दो दिन के इस दौरे में उदयपुर से लेकर सलूम्बर के धोलागढ़ धाम तक, रविंद्र सिंह भाटी के लिए उमड़ा जनसैलाब एक स्पष्ट संकेत दे रहा है— मेवाड़ की युवा पीढ़ी अब ‘पुराने चेहरों’ से ऊब चुकी है!
‘रावसा’ की दहाड़ से पुराने किले की नींव हिल रही
भाजपा और कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में, भाटी का गर्मजोशी से स्वागत यह साबित करता है कि जनता अब पार्टी की दीवारों को तोड़कर व्यक्तिगत नेतृत्व को तवज्जो दे रही है। जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उन्हें गले लगाया, वह बताता है कि रविंद्र सिंह भाटी अब केवल एक निर्दलीय विधायक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रतीक बन चुके हैं।
यह प्रसिद्धि सिर्फ मारवाड़ तक सीमित नहीं है, अब यह मेवाड़ तक पसर चुकी है और यही बात तीनों दलों (कांग्रेस, भाजपा और बाप) के लिए चिंता का सबब बन रही है:
भाजपा की ‘अंदरूनी कलह’ पर खतरा: हाल ही में शहर भाजपा की नई कार्यकारिणी की घोषणा के बाद कटारिया गुट से जुड़े कई दिग्गजों को साइडलाइन किया गया है। ऐसे में, भाटी का बढ़ता प्रभाव भाजपा के असंतोष को हवा दे सकता है। भितरघात और धड़ों में बंटी बीजेपी के लिए युवा वर्ग को एकजुट रखना अब चुनौती होगा।
कांग्रेस का ‘फूट’ वाला किला: मेवाड़ में कांग्रेस पहले से ही कई गुटों में बंटी हुई है। ज़मीन पर उसका संगठन कमज़ोर है और बड़े नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई जारी है। भाटी जैसे युवा, ऊर्जावान चेहरे का उभार कांग्रेस के लिए एक बड़ा खतरा है, क्योंकि वह सीधे-सीधे युवा वोटर को अपनी तरफ खींच रहे हैं।
बाप (BAP) पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा: हाल ही में राजनीति का तीसरा चेहरा बनकर सामने आई भारत आदिवासी पार्टी (BAP) भी अभी पूरी तरह से स्थिर नहीं है। आंतरिक कलह और खींचतान की ख़बरें बाप की छवि को धूमिल कर रही हैं। ऐसे में, रविंद्र सिंह भाटी की लोकप्रियता आदिवासी क्षेत्रों में भी युवाओं को एक विकल्प दे रही है, जो बाप की राजनीतिक संभावनाओं को कमजोर कर सकती है।
मेवाड़ की राजनीति लिख रही है नई परिभाषा
यह साफ है कि मेवाड़-वागड़ की राजनीति अब वंशवाद और पारंपरिक गुटबाजी से थक चुकी है। युवा अब एक नई दिशा में अपनी राजनीतिक परिभाषा लिख रहे हैं। रविंद्र सिंह भाटी इसी बदलाव की बयार का चेहरा हैं।
मारवाड़ का यह विद्रोही युवा, मेवाड़ की राजनीति के सारे पुराने समीकरण तोड़ने की ताकत रखता है। अगर कांग्रेस और भाजपा ने अपनी अंतरकलह और असंतोष को नहीं साधा, तो आने वाले समय में रविंद्र सिंह भाटी एक क्षेत्रीय शक्ति बनकर उभरेंगे, जो सिर्फ मारवाड़ या मेवाड़ नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान की राजनीति में बड़ी हलचल मचा सकते हैं।
क्या मेवाड़ के राजनीतिक क्षितिज पर अब किसी तीसरे ध्रुव का उदय हो रहा है? यह सवाल भाजपा, कांग्रेस और बाप तीनों के लिए गहरी चिंतन की लकीरें छोड़ गया है।
