वागड़ की दिव्यानी की अधूरी कहानी: 7 महीने पहले डोली उठी, अब बस यादें बाकी  

डूंगरपुर जिले के भीलूडा गांव के आंगन में खुशियों का रंग अभी पूरी तरह चढ़ा भी नहीं था कि मानो किसी की नज़र लग गई। जिस बेटी की डोली सात महीने पहले धूमधाम से उठी थी, आज उसकी अर्थी उठ रही है। डूंगरपुर की दिव्यानी यादव, जिसकी आंखों में भविष्य के सपने पल रहे थे, एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए अपने मायके आई थी, लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था।

7 फरवरी, 2025 को दिव्यानी ने एक नई जिंदगी की शुरुआत की थी। गलियाकोट के जयदीप यादव के साथ उसका रिश्ता जुड़ा, और दोनों ने मिलकर एक नई दुनिया बसाने के ख्वाब देखे। जयदीप अहमदाबाद में अपनी रोजी-रोटी कमा रहा था और दिव्यानी अपने सपनों को पंख देने के लिए अपने मायके लौटी थी। उसे क्या पता था कि ये पंख उसकी उड़ान के नहीं, बल्कि हमेशा के लिए खामोश हो जाने के लिए बने थे।

रविवार की शाम, जब माता-पिता खेतों से लौटे तो घर की दहलीज पर एक गहरा सन्नाटा पसरा था। जिस घर में बेटी की हंसी गूंजा करती थी, आज वहां सिर्फ़ खामोशी थी। उन्होंने सोचा भी न होगा कि कमरे के अंदर का वो दृश्य उनके दिल को हमेशा के लिए तोड़ देगा। उनकी दिव्यानी फंदे से लटकी हुई थी। पल भर में सारा जहां थम गया। जिस बेटी को उन्होंने अपने हाथों से पाला था, आज वही एक बेजान शरीर बनकर उनके सामने थी।

पूरी रात गांव में मातम पसरा रहा। पुलिस आई, जांच हुई, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि हँसती-खेलती दिव्यानी ने इतना बड़ा कदम उठा लिया। सोमवार को पोस्टमार्टम के बाद जब शव को परिजनों को सौंपा गया, तो हर आंख नम थी। एक तरफ सपनों का बोझ, दूसरी तरफ समाज का दबाव या फिर कोई अनजाना गम—वजह चाहे जो भी हो, आज बस एक बात तय है कि एक बेटी का जीवन, जिसे अभी कई साल जीने थे, असमय ही थम गया। पीछे रह गईं तो बस कुछ अधूरी यादें और सवाल, जिनका जवाब शायद कभी नहीं मिल पाएगा।

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