
महाराष्ट्र एक बार फिर ‘मराठी अस्मिता’ बनाम ‘हिंदी भाषी प्रवासी’ की लड़ाई की चपेट में है। “महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी सीखनी पड़ेगी” — इस नारे ने अब सामाजिक चेतावनी की सीमा लांघकर एक खुली धमकी का रूप ले लिया है। मुंबई से लेकर मीरा रोड तक MNS कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही मारपीट और जबरन मराठी बोलवाने की घटनाएं पूरे देश में चिंता का विषय बन चुकी हैं।
MNS की भाषा-पट्टी गुंडागर्दी: दुकानदारों से लेकर मजदूरों तक निशाने पर
29 जून को मीरा रोड पर एक गुजराती दुकानदार को सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि वह मराठी में बात नहीं कर रहा था। घटना के विरोध में स्थानीय व्यापारियों ने प्रदर्शन किया, जिसके जवाब में MNS कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया — और पुलिस को अंततः उन्हें हिरासत में लेना पड़ा। लेकिन सवाल ये है कि यह ‘मराठी गौरव’ की लड़ाई है या ‘राजनीतिक नाटक’ का ट्रेलर?
भाषा की आड़ में चुनावी जमीन तैयार? ठाकरे बंधु फिर साथ
20 साल बाद एक ही मंच पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का आना महज संयोग नहीं, रणनीति है। कारण है BMC चुनाव — भारत की सबसे अमीर नगर पालिका जहां 74,000 करोड़ से अधिक का बजट दांव पर है। मराठी वोटबैंक को एकजुट करने की कोशिश में ठाकरे बंधु अब ‘मराठी भाषा’ को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं।
केंद्र की थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी के विरोध के नाम पर दोनों भाई एक मंच पर आए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में MNS कार्यकर्ता भाषा के नाम पर हिंसा पर उतारू हैं। ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि मराठी अस्मिता की आड़ में वोटबैंक की राजनीति हो रही है या असल में महाराष्ट्र की संस्कृति को लेकर चिंता?
गुंडागर्दी पर सियासत: विरोध में गरजे सांसद, नेताओं ने फटकारा
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कड़ा रुख अपनाते हुए चेतावनी दी:
“अगर मराठी न बोलने पर गरीबों को पीटोगे, तो हम यूपी-बिहार में पटक पटक कर मारेंगे।”
दुबे ने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को खुला चैलेंज दिया:
“हिम्मत है तो मुकेश अंबानी के घर जाओ, जहां मराठी कम बोली जाती है, या माहिम के मुस्लिम बहुल इलाकों में जाकर देखाओ दम!”
राजस्थान के पंचायतीराज मंत्री ओटाराम देवासी और राजसमंद विधायक दीप्ति माहेश्वरी ने भी इस मुद्दे को गंभीर बताया और महाराष्ट्र सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की।
कितनी सुरक्षित है भारत में एकता की भाषा?
भाषा, जो जोड़ने का माध्यम होती है, आज महाराष्ट्र में बांटने का औजार बन गई है। सवाल यह है कि क्या कोई भी राज्य किसी नागरिक को भाषा के आधार पर उसका हक छीन सकता है? संविधान कहता है नहीं — लेकिन राजनीति कह रही है हां।
BMC चुनाव के करीब आते ही ‘मराठी बनाम गैर मराठी’ की आग फिर भड़काई जा रही है। लेकिन इस राजनीति की चपेट में सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है आम जनता का — खासकर उन प्रवासियों का जो पेट भरने के लिए मुंबई की ओर रुख करते हैं।
निष्कर्ष: भाषा का अपमान नहीं, राजनीति का असली चेहरा बेनकाब
राज ठाकरे की MNS और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने मराठी भाषा को अपनी सियासी ढाल बना लिया है। लेकिन हिंसा, जबरदस्ती और डर की राजनीति किसी भी राज्य के लिए खतरनाक है। यह न सिर्फ महाराष्ट्र की छवि को धूमिल करती है, बल्कि भारतीय एकता और संविधान के मूल्यों को भी चोट पहुंचाती है।
भाषा की विविधता भारत की ताकत है, और यदि इसे हथियार बनाया गया, तो यह ताकत जल्द ही एक त्रासदी में बदल सकती है।
