
भीलवाड़ा। कानून के रक्षक जब खुद भक्षक बन जाएं, तो न्याय की देवी का हथौड़ा इसी तरह गरजता है। भीलवाड़ा के कोतवाली थाने में तैनात रहे पूर्व एएसआई लक्ष्मीनारायण शर्मा को कोर्ट ने भ्रष्टाचार के दलदल में धंसने की ऐसी सजा सुनाई है कि पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है। करीब 12 साल पुराने रिश्वत कांड में फैसला सुनाते हुए विशिष्ट न्यायालय ने आरोपी एएसआई को ढाई साल के कठोर कारावास और भारी-भरकम 3 लाख रुपए के जुर्माने से दंडित किया है। यह फैसला उन भ्रष्ट अधिकारियों के लिए सीधा संदेश है जो वर्दी की हनक दिखाकर मासूमों की जेब पर डाका डालते हैं।
ये काली कहानी साल 2013 में शुरू हुई थी, जब सत्ता और रसूख के नशे में चूर एएसआई लक्ष्मीनारायण ने एक आरोपी को पुलिसिया मारपीट से बचाने और जांच में मदद करने का सौदा किया था। एएसआई ने 3 लाख रुपए की मोटी घूस मांगी थी, जिसमें से 1 लाख रुपए वह पहले ही डकार चुका था। लेकिन लालच की कोई सीमा नहीं होती; साहब 50 हजार रुपए की अगली किस्त के लिए लगातार दबाव बना रहे थे। उन्हें क्या पता था कि जिस एडवोकेट के घर वो नोट गिनने जा रहे हैं, वहां एसीबी (ACB) ने पहले से ही उनकी गिरफ्तारी की पटकथा लिख रखी है। जैसे ही बापू नगर में घूसखोर एएसआई ने नोटों की गड्डी थामी, एसीबी की टीम ने उसे रंगे हाथों दबोच लिया।
12 साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार इंसाफ की जीत हुई। विशिष्ट लोक अभियोजक राजेश अग्रवाल ने कोर्ट में ऐसे पुख्ता सबूत और गवाह पेश किए कि आरोपी एएसआई के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए माना कि पद का दुरुपयोग कर जनता को प्रताड़ित करने वाले ऐसे लोक सेवक समाज के लिए कलंक हैं। अब जेल की चक्की पीसने के साथ-साथ इस पूर्व पुलिस अधिकारी को जुर्माने की भारी राशि भी भरनी होगी। 12 साल बाद आया यह ‘ट्रैप’ का फैसला भीलवाड़ा पुलिस के इतिहास में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नजीर बन गया है।
