पल पल राजस्थान / महावीर व्यास

भीलवाड़ा. पंडेर पंचायत में सरपंच पद को लेकर शुरू हुआ विवाद गुरुवार को हाईवोल्टेज ड्रामे में तब्दील हो गया, जब सरपंच पति मुकेश जाट नाराज होकर दोपहर करीब 2 बजे मोबाइल टावर पर चढ़ गया। सरपंच पत्नी ममता मुकेश जाट को पदभार ग्रहण नहीं करने देने से आहत मुकेश करीब साढ़े 9 घंटे तक टावर पर चढ़ा रहा।
मौके पर पहुंचे एसडीएम राजकेश मीणा और एएसपी राजेश आर्य की समझाइश के बाद देर रात वह टावर से नीचे उतरा। नीचे उतरते ही मौजूद समर्थकों ने ‘जयकारे’ लगाए।
तीन दिन से बंद पंचायत भवन, हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद पदभार नहीं
सारा मामला 7 जुलाई को राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश से शुरू हुआ, जिसमें ममता जाट का निलंबन स्थगित कर दिया गया। आदेश के बाद 8 जुलाई को ममता अपने समर्थकों के साथ ढोल-नगाड़ों के साथ जुलूस निकालते हुए पंचायत भवन पहुंचीं, लेकिन मेन गेट पर ताला लगा मिला।
ममता का आरोप है कि यह राजनीतिक दुर्भावना से किया गया कृत्य है। उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट का आदेश जिला कलेक्टर और सीईओ को तामील कराया गया था, बावजूद इसके उन्हें पदभार ग्रहण करने से रोका गया।
धरना, नारेबाजी और प्रशासन से सवाल
तब से लेकर बीते तीन दिनों से पंचायत भवन के बाहर धरना जारी है। गुरुवार को जब विकास अधिकारी सीताराम मीणा ताला खोलने पहुंचे, तो वहां मौजूद समर्थकों ने ‘प्रशासन हाय-हाय’ के नारे लगाए।
“ताला खोलने से क्या होगा? सवाल ये है कि ताला लगाया ही क्यों गया!” – एक समर्थक
सरपंच पति का वीडियो वायरल, मांग पूरी करने की जिद
मोबाइल टावर पर चढ़े मुकेश जाट ने वीडियो जारी कर कहा कि उनकी पत्नी को राजनीतिक साजिश के तहत पद से हटाया गया था, लेकिन कोर्ट ने न्याय किया। अब प्रशासन की लापरवाही से उन्हें दोबारा अपमानित किया जा रहा है।
उनकी मांग है:
- सरपंच ममता को तत्काल पदभार ग्रहण कराया जाए।
- पंचायत भवन पर ताला लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो।
क्या है आरोपों की पृष्ठभूमि?
सरपंच ममता पर पूर्व में लगे आरोपों में:
- सामुदायिक भवन व चारदीवारी के उद्घाटन में जनप्रतिनिधियों को नहीं बुलाना।
- शिलालेख पर नाम न अंकित कराना।
- रोड लाइट कार्य में गड़बड़ी।
- पट्टों में अनियमितताएं।
इनके आधार पर सरकार ने 7 मई 2025 को ममता को प्रशासक पद से हटा दिया था।
अब सवाल यह है — लोकतंत्र की जीत होगी या प्रशासनिक चूक की सजा?
पंडेर पंचायत में ममता जाट और उनके समर्थकों की लड़ाई अब सिर्फ एक पद की नहीं, बल्कि सिस्टम के विरुद्ध न्याय की जिद बन गई है। देखना यह है कि प्रशासन संवेदनशीलता से समाधान निकालता है या आग में घी डालने का काम करता है।