राजपरिवार से 300 वर्ष बाद आया बुलावा, क्या वास्तव में राजपुरोहित को मिला सम्मान या दिखावा ?

पल पल राजस्थान – हर्ष जैन

Udaipur News उदयपुर के सिटी पैलेस में 300 साल पुराने मनमुटाव को सुलझाने की पहल के नाम पर जो हुआ, वह क्या वास्तव में सम्मान था या केवल एक औपचारिकता? लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ द्वारा पाली के उन पांच गांवों के राजपुरोहितों को ससम्मान बुलाने की बात कही जा रही है, जिनके पूर्वजों को हल्दीघाटी युद्ध के बाद जागीरें दी गई थीं। लेकिन सवाल यह उठता है कि तीन सौ साल तक जिन लोगों को भुला दिया गया, उन्हें अब क्यों याद किया गया?

इतिहास गवाह है कि मेवाड़ राजवंश और इन राजपुरोहित परिवारों के बीच एक गहरा रिश्ता था। यह रिश्ता केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और पारिवारिक भी था। लेकिन समय के साथ इस रिश्ते को भुला दिया गया। वर्षों तक इन गांवों की बेटियां राखी भेजती रहीं, लेकिन राजपरिवार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। जब यह अपमान सहन से बाहर हो गया, तो इन परिवारों ने राजमहल की दहलीज पर कदम न रखने की प्रतिज्ञा ली। अब अचानक तीन सौ साल बाद बुलावा भेजा गया। क्या यह वास्तव में दिल से किया गया सम्मान था या सिर्फ एक दिखावा? क्या यह सिर्फ अपनी छवि सुधारने की कोशिश थी? क्या इतने वर्षों की उपेक्षा के बाद एक बुलावे से सभी घाव भर सकते हैं? राजपुरोहितो का कहना है कि उन्हें सम्मान का अहसास हुआ, लेकिन क्या यह अहसास स्थायी रहेगा या फिर से यह रिश्ता इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगा? यह समय बताएगा कि यह पहल एक सच्चे रिश्ते की बहाली थी या महज एक राजनीतिक और सामाजिक औपचारिकता!

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