एसआई भर्ती रद्द: एक आदिवासी युवक के टूटे सपने और मां की बेबसी

डूंगरपुर: राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा 2021 की एसआई भर्ती को रद्द करने के फैसले ने अनगिनत गरीब और मेहनतकश युवाओं के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। इसी कड़ी में डूंगरपुर के एक आदिवासी परिवार के बेटे, दिनेश वरहात, का भविष्य अंधकारमय हो गया है। दिनेश के सपनों के साथ-साथ उसके पूरे परिवार की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है।

संघर्षों से भरा जीवन, एक उम्मीद की किरण

संचिया गांव के एक कच्चे मकान में रहने वाले दिनेश का जीवन शुरू से ही अभावों से भरा रहा है। गरीबी, लाचारी और जिम्मेदारियों के बोझ के बावजूद, उसने कभी हार नहीं मानी। मजदूरी करने से लेकर पुलिस चौकी में खाना बनाने तक, हर काम किया, लेकिन उसका एक ही सपना था – पुलिस की वर्दी पहनना और समाज की सेवा करना। 2021 की एसआई भर्ती में उसका चयन हुआ तो परिवार की आंखों में खुशी की चमक आ गई। मां शारदा को लगा कि अब गरीबी के दिन लद जाएंगे, भाई-बहनों की पढ़ाई पूरी होगी और घर में खुशहाली लौटेगी।

पढ़ाई में अव्वल, पुलिस सेवा का जुनून

दिनेश बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहा। सरकारी स्कूलों से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर स्नातक की डिग्री हासिल की। मुश्किल हालात के बावजूद उसने पढ़ाई जारी रखी। गुजरात में मजदूरी, होटलों में काम और कोरोना काल में जब सब कुछ ठप्प हो गया, तब कनबा चौकी में पुलिसवालों के लिए खाना बनाने का काम भी किया। इसी दौरान उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, पुलिस की वर्दी पहनकर ही रहेगा।

कई नौकरियों में चयन, पर दिल पुलिस में

दिनेश की मेहनत रंग लाई और उसका चयन कॉन्स्टेबल, पटवारी, ग्राम विकास अधिकारी और वनपाल जैसी कई सरकारी नौकरियों में हुआ। खेरवाड़ा के डबायचा में पटवारी के तौर पर 16 महीने सेवा देने के बाद भी, पुलिस सेवा का उसका जुनून इतना गहरा था कि उसने यह नौकरी छोड़कर एसआई भर्ती की तैयारी जारी रखी।

समाज सेवा का जज्बा: दूसरों के लिए भी लड़े

दिनेश सिर्फ अपने भविष्य की चिंता नहीं करता था, बल्कि दूसरों की जिंदगी संवारने का भी जज्बा रखता था। उसने डूंगरपुर के आदिवासी छात्रावास में 3 साल तक नि:शुल्क बच्चों को पढ़ाया। उसकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज उसके पढ़ाए हुए 100 से ज्यादा बच्चे सरकारी सेवाओं में हैं, जिनमें से करीब 40 पुलिस विभाग में कार्यरत हैं।

परिवार की बेबसी और मां का दर्द

दिनेश के पिता अमृतलाल लंबे समय से बीमार हैं। घर की हालत आज भी दयनीय है, कच्चा मकान और कच्चा रास्ता। मां शारदा ने कभी नरेगा में काम करके, कभी अनाज बेचकर, तो कभी छोटे-मोटे काम करके बच्चों को पढ़ाया। सबसे बड़े बेटे दिनेश की नौकरी लगने से मां को लगा कि अब घर की सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी। लेकिन, भर्ती रद्द होने से वह टूट गई हैं। रोते हुए कहती हैं, “मैं मर भी नहीं सकती, पीछे पांच बच्चे हैं। घर आज भी अधूरा है, बेटियों की शादी की उम्र हो गई, पर कुछ नहीं है।” भाई जितेश ने बताया कि दिनेश की नौकरी लगने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन दिनेश ने ही उसे वापस पढ़ने के लिए प्रेरित किया। आज कोर्ट के फैसले से पूरा परिवार बिखर गया है।

हजारों युवाओं की चिंता

राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ दिनेश के लिए ही नहीं, बल्कि हजारों ऐसे युवाओं के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने वर्षों की मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया था। अभ्यर्थियों का कहना है कि गड़बड़ी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो, लेकिन जिन्होंने ईमानदारी से मेहनत की है, उन्हें इस तरह सजा मिलना न्यायसंगत नहीं है।

यह घटना उन हजारों युवाओं की व्यथा को दर्शाती है, जिनका भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। ऐसे में, सरकार और न्यायपालिका से उम्मीद है कि वे इन मेहनतकश युवाओं की भावनाओं और उनके संघर्षों को समझेंगे और उचित समाधान निकालेंगे।

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