स्वच्छ भारत सिर्फ कागज़ों में! मोखुंदा पंचायत में गंदगी के अंबार

गांव की गलियों में गंदगी और प्रशासनिक चुप्पी से भड़के ग्रामीण, छह माह से शिकायतों के बावजूद कोई सुनवाई नहीं

पल पल राजस्थान

मोखुंदा । एक ओर सरकार “स्वच्छ भारत मिशन” को लेकर करोड़ों का बजट खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। ग्राम पंचायत मोखुंदा में हालात इतने बदतर हैं कि गांव की गलियों और मोहल्लों में गंदगी के ढेर लगे हैं, नालियां जाम हैं और सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है।

पंचायत स्तर पर सफाई कार्यों के लिए लाखों रुपए का बजट मिलने के बावजूद, गांव के बलाई (सालवी) मोहल्ले सहित अन्य हिस्सों में पिछले पांच वर्षों से कोई नियमित सफाई नहीं हुई। पूर्व सरपंच कजोड़ीमल, घीसूलाल, बसंतीलाल पोखरणा जैसे वरिष्ठ नागरिकों के मोहल्लों की स्थिति भी बदतर बनी हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि “जो सफाई कार्य होना चाहिए, वह सिर्फ कागज़ों में होता है।”
कागज़ों में स्वच्छता, ज़मीनी हकीकत गंदगी
ग्रामीणों का आरोप है कि ग्राम पंचायत को सफाई के नाम पर हर वर्ष लाखों रुपए का बजट मिलता है, लेकिन इस बजट का अधिकांश हिस्सा कथित तौर पर हेरा-फेरी में चला जाता है। पंचायत सिर्फ अपने चुनिंदा इलाकों में सफाई करवाकर तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिखाती है, जबकि अधिकांश मोहल्ले उपेक्षित रहते हैं।


छह महीने से शिकायतें, फिर भी ‘मौन व्रत’
बीते छह महीनों से ग्रामीण लगातार प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से शिकायतें कर रहे हैं, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। न कोई निरीक्षण, न कोई कार्रवाई। ग्रामीणों का कहना है कि “पूरा तंत्र कमीशनखोरी के दलदल में फंसा है और ऊपर तक कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं।”


गांव की बदहाली पर सोशल मीडिया भी मौन
चौंकाने वाली बात यह है कि गांव की बदहाल स्थिति और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता पर न तो सोशल मीडिया में कोई प्रभाव पड़ा, न ही किसी समाचार के प्रकाशन पर कोई संज्ञान लिया गया।

ग्रामीणों का बढ़ता आक्रोश
स्थानीय निवासी गुस्से में कहते हैं, “हम सिर्फ वोट देने के लिए हैं क्या? सफाई जैसी बुनियादी सुविधा भी नहीं मिल रही है।

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