उपचुनाव नतीजे: देहात भाजपा के जिलाध्यक्ष पुष्कर तेली और जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी के गढ़ में सेंध, जनता का ‘नया जनादेश’  

हाल ही में हुए पंचायत उपचुनावों ने राजस्थान की राजनीति में एक दिलचस्प तस्वीर पेश की है, जहां जीत और हार का गणित बड़े सियासी चेहरों के लिए नई चुनौतियां लेकर आया है। ये नतीजे सिर्फ एक वार्ड की जीत-हार नहीं, बल्कि उन दिग्गजों की साख की कसौटी भी बन गए हैं, जिनकी अपनी ही जमीन पर पकड़ कमजोर होती दिख रही है।

झाड़ोल में भाजपा को झटका, मंत्री के गढ़ में कांग्रेस की सेंध

झाड़ोल का परिणाम सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा। कैबिनेट मंत्री बाबूलाल खराड़ी के गृह क्षेत्र में भाजपा को मिली हार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सिर्फ एक सीट का नुकसान नहीं, बल्कि मंत्री के अपने प्रभाव क्षेत्र में कांग्रेस की मजबूत वापसी का संकेत है। जहां एक तरफ मंत्री खुद प्रचार में उतरे, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी कमियालाल गरासिया ने 373 मतों के बड़े अंतर से जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया कि जमीनी हकीकत सियासी नारों से कहीं ज्यादा मायने रखती है। यह हार भाजपा के लिए आत्मचिंतन का विषय है कि क्या बड़े नाम ही जीत की गारंटी हैं या कार्यकर्ताओं की एकजुटता ज्यादा जरूरी है।

खेरवाड़ा में कांग्रेस को निराशा, पूर्व मंत्री के किले में भाजपा का कब्जा

खेरवाड़ा का नतीजा कांग्रेस के लिए एक कड़वी सच्चाई लेकर आया। कांग्रेस विधायक और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री दयाराम परमार के इलाके में भाजपा की जीत ने कांग्रेस के खेमे में मायूसी ला दी है। भाजपा प्रत्याशी नरेश मोची की 680 मतों से जीत ने यह दिखाया कि गढ़ कितना भी मजबूत हो, अगर जनता का मूड बदला तो किला ढहने में देर नहीं लगती। यह हार कांग्रेस के लिए एक चेतावनी है कि विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में जनता से जुड़े रहना होगा, क्योंकि सिर्फ पद से काम नहीं चलता, बल्कि जनता का विश्वास जीतना भी उतना ही जरूरी है।

सायरा में कांग्रेस की पकड़ मजबूत

सायरा में कांग्रेस की जीत ने पार्टी को थोड़ी राहत जरूर दी है। कांग्रेस की गंगा कुमारी गरासिया ने भाजपा की चुन्नीबाई गरासिया को 938 वोटों के बड़े अंतर से हराकर अपनी पकड़ मजबूत साबित की है। यह जीत यह भी दिखाती है कि हर जगह एक ही कहानी नहीं है, और कुछ क्षेत्रों में पार्टी अपनी ताकत बरकरार रखे हुए है।

कुल मिलाकर, ये उपचुनाव बताते हैं कि राजस्थान की राजनीति में कोई भी सीट सुरक्षित नहीं है। चाहे वह कैबिनेट मंत्री का इलाका हो या पूर्व मंत्री का गढ़, जनता का फैसला ही सर्वोपरि है। ये नतीजे न केवल पार्टी आलाकमान के लिए बल्कि उन नेताओं के लिए भी एक सबक हैं, जिन्हें अब अपनी रणनीति पर नए सिरे से काम करने की जरूरत है।

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