सांसद राजकुमार रोत ने सरकार के रवैए पर उठाए सवाल:बोले- आदिवासी दिवस के नाम पर राज्य सरकार ने किया 50 लाख का घोटाला

चित्तौड़गढ़ में रविवार को विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया। इस मौके पर आदिवासी सांसद राजकुमार रोत ने सरकार पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश में करीब 10 करोड़ 47 लाख आदिवासी हैं, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 14-15 करोड़ हो गई है। कुछ आदिवासी लोग धर्म या जाति बदलकर रिकॉर्ड से बाहर हो गए हैं।

उन्होंने बताया कि इस दिवस की शुरुआत आदिवासी समुदाय के अधिकार और संरक्षण के लिए की गई थी, लेकिन यह दुख की बात है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कोई शुभकामना नहीं दी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो हर त्यौहार पर ट्वीट करते हैं, उन्होंने भी इस बार कोई बधाई नहीं दी।

राज्य सरकार ने इस कार्यक्रम के लिए 50 लाख रुपए का बजट तय किया था। इसमें से 25 लाख रुपए सागवाड़ा में राज्य स्तरीय कार्यक्रम पर खर्च किए गए। कहा गया था कि मुख्यमंत्री इसमें शामिल होंगे, लेकिन न तो वे आए और न ही कोई कैबिनेट मंत्री। सांसद ने आरोप लगाया कि सरकार ने इस दिवस के नाम पर 50 लाख रुपए का घोटाला किया है।

शौर्यगाथा का उदाहरण देना होता है तो चित्तौड़ सबसे आगे सांसद राजकुमार रोत ने चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक और सामाजिक पहलुओं को लेकर एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि चित्तौड़ का इतिहास न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे भारत के लिए गौरवशाली रहा है। जब भी देश में किसी नेता को अपनी शौर्यगाथा या परंपरा का उदाहरण देना होता है, तो सबसे पहले चित्तौड़गढ़ का नाम लिया जाता है।

चित्तौड़गढ़ में कलेक्ट्रेट के सामने से निकाली रैली।

‘भील समुदाय की उपेक्षा की जा रही है’

सांसद रोत ने खासतौर से महाराणा प्रताप और राणा पूंजा का नाम लेते हुए कहा कि इन महापुरुषों के साथ जिन लोगों ने युद्ध में भाग लिया, उनमें सबसे अहम भूमिका भील समुदाय की रही। लेकिन, उन्होंने दुख जताया कि आज वही भील समुदाय समाज में सबसे पिछड़ा हुआ है और सरकारों द्वारा लगातार उपेक्षित किया जा रहा है।

‘हल्दीघाटी के युद्ध में हजारों भीलों ने बलिदान दिया’

रोत ने बताया कि इतिहास गवाह है कि जब हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया था, तब हजारों की संख्या में भीलों ने महाराणा प्रताप की सेना में शामिल होकर बलिदान दिया था। राणा पूंजा, जो एक भील नेता थे, उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। आज जो भील समुदाय के लोग चित्तौड़ में रहते हैं, वे उन्हीं योद्धाओं के वंशज हैं।

‘चित्तौड़गढ़ में भीलों की आबादी सबसे ज्यादा’

सांसद रोत ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भील समुदाय को न तो प्रशासनिक स्तर पर प्रतिनिधित्व मिल पाया है और न ही राजनीतिक स्तर पर। चित्तौड़गढ़ में भीलों की आबादी सबसे अधिक है, इसके बावजूद भी वे शिक्षा, रोजगार और भूमि अधिकारों जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि आज के नेताओं को महाराणा प्रताप का नाम तो याद रहता है, लेकिन उनके साथ लड़े भील योद्धाओं को भुला दिया जाता है। यहां तक कि जब भील समुदाय के लोगों को कोई उपलब्धि मिलती है, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से बधाई देने में भी संकोच किया जाता है।

चित्तौड़गढ़ में धूमधाम से मनाया विश्व आदिवासी दिवस।

भील प्रदेश की मांग को दोहराया

राजकुमार रोत ने एक बार फिर भील प्रदेश की मांग को दोहराया। उन्होंने कहा कि अगर समय रहते भील प्रदेश की मांग मानी गई होती, तो आज चित्तौड़ और अन्य इलाकों में रहने वाले भील समुदाय की ऐसी दुर्दशा नहीं होती। न उन्हें भूमि मिल पाई, न ही शिक्षा और रोजगार। उन्होंने कहा कि भील समुदाय हमेशा से संघर्ष करता आया है, लेकिन उन्हें आज भी न्याय नहीं मिला।

सांसद रोत ने हाल की एक अंतरराष्ट्रीय घटना को लेकर भी केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब पाकिस्तान ने एक “घिनौनी हरकत” की, तब देश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने एकजुट होकर सरकार का समर्थन किया और कहा कि भारत को मजबूती से जवाब देना चाहिए। लेकिन नतीजा यह रहा कि अमेरिका के दबाव में आकर सीजफायर (युद्धविराम) कर दिया गया।

‘झुककर समझौता नहीं करे, करारा जवाब दें’

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयानों की तुलना करते हुए कहा कि तीनों के बयान अलग-अलग थे। इससे यह साफ होता है कि सरकार इस मुद्दे पर एकमत नहीं थी और अमेरिका के दखल की वजह से भारत को झुकना पड़ा। उन्होंने इसे देश की जनता का अपमान बताया और कहा कि इससे देश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।

राजकुमार रोत ने यह भी दावा किया कि इस संघर्ष में भारत का ज्यादा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि 5 राफेल विमान उड़ाए गए, जिससे सरकार इसका जबाव नहीं दे रही है। उन्होंने सरकार से मांग की कि अगर पाकिस्तान ने कोई गलत कदम उठाया है, तो उसे करारा जवाब दिया जाए, न कि झुककर समझौता किया जाए।

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