
जयपुर की 58 साल की शिमला देवी, जिनका शरीर बुखार से तप रहा था, शायद कभी नहीं जानती थीं कि एक अस्पताल की चौखट पर उम्मीद के साथ रखा उनका कदम, ज़िंदगी का आखिरी कदम बन जाएगा. ‘एडवांस हॉस्पिटल’ में भर्ती हुईं, ‘स्क्रब टायफस’ बताया गया, और फिर, महज़ दो घंटे बाद ही, उनकी हालत बिगड़ गई. डॉक्टरों ने आनन-फानन में उन्हें जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल ले जाने की सलाह दी.
लेकिन जिस एम्बुलेंस को ‘जीवनवाहिनी’ बनकर चलना था, वही बीच रास्ते में ‘मौत की गाड़ी’ बन गई.
परिवार का दिल दहला देने वाला आरोप है कि एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सपोर्ट ही नहीं था. हर बीतता मिनट शिमला देवी के लिए भारी होता जा रहा था. उनके बेटों ने ड्राइवर से मिन्नतें कीं, “भैया, ऑक्सीजन लगा दो, मां की साँसें उखड़ रही हैं.” लेकिन ड्राइवर कभी बहाना बनाता रहा, तो कभी अनजान बना रहा.
एक उम्मीद की किरण तब दिखी जब एक और सिलेंडर लगाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. साँसों की लड़ाई में शिमला देवी हार चुकी थीं. शहर के व्यस्त चौरड़िया पेट्रोल पंप से कुछ ही दूरी पर एम्बुलेंस रुक गई. ड्राइवर ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और बेबस परिवार को बीच रास्ते में छोड़कर अँधेरे में गायब हो गया.
सड़क पर बिलखते परिवार ने एम्बुलेंस के शीशे तोड़ दिए, उनका गुस्सा अस्पताल की लापरवाही पर फूट पड़ा. लेकिन तोड़फोड़ से क्या होता, जो चला गया था, वो तो वापस नहीं आता. जब तक वे शिमला देवी को दूसरे अस्पताल लेकर पहुँचे, डॉक्टर ने उन्हें ‘मृत घोषित’ कर दिया.
एक माँ की जान, सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि जिस एम्बुलेंस में उसे भेजा गया, उसमें ऑक्सीजन नहीं थी. एक ज़िंदगी लापरवाही और अनदेखी की भेंट चढ़ गई. परिवार ने अस्पताल प्रशासन, डॉक्टर और एम्बुलेंस ड्राइवर के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई है. लेकिन क्या ये कार्रवाई उस खोई हुई जान को लौटा पाएगी, जिसका परिवार आज भी उस भयानक मंज़र को याद कर सिहर उठता है?