पल पल राजस्थान | महावीर व्यास

उदयपुर, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है, इस वर्ष 6 जुलाई (शनिवार) को मनाई जाएगी। यह एकादशी सभी एकादशियों में विशेष मानी जाती है और इसके साथ चातुर्मास का आरंभ भी होता है – एक ऐसा कालखंड जिसमें विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।
हर माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की ग्याहरवीं तिथि पर एकादशी व्रत किया जाता है। इस दिन सृष्टि के संचाकल श्री विष्णु की उपासना की जाती है, जिसके प्रभाव से जीवन में सुख-समृद्धि व मोक्ष मिलता है। इस दौरान सभी एकादशी में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की ग्याहरवीं तिथि को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इस दिन देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस दिन की गई पूजा, दान व अन्य पुण्य कार्य का फल साधक को अवश्य मिलता है। बड़ी बात यह है कि देवशयनी से चातुर्मास लगता है जब भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान पूरी सृष्टि का संचालन देवों के देव महादेव करते हैं। ऐसे में श्रीहरि को प्रसन्न करने और विशेष कृपा प्राप्ति के लिए यह समय अधिक कल्याणकारी है। इस साल 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी का उपवास किया जाएगा। इस दिन इन उपायों को करने से कर्ज, रोग, तनाव से छुटकारा मिलता है।
पंडित अनिल शास्त्री के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह तक यह स्थिति रहती है। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें साधक व्रत, उपवास और पूजा-पाठ के माध्यम से आध्यात्मिक साधना में लीन रहते हैं।
इस एकादशी पर व्रत और पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के समस्त पापों का नाश माना जाता है।
इस शुभ अवसर पर श्रद्धालु भगवान विष्णु की पूजा, विष्णुसहस्रनाम पाठ और व्रत रखते हैं। यह दिन आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शुद्धि का विशेष पर्व है
देवउठनी एकादशी के बाद फिर से होंगे शुभ कार्य
देवउठनी एकादशी (1 नवंबर) के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इसके बाद फिर से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्य शुरू होते हैं।
साधना, भक्ति और व्रत का काल
चार महीने तक चलने वाला चातुर्मास, साधना, भक्ति और व्रत का काल होता है। इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु विष्णु सहस्रनाम का जाप करते हैं। भगवान विष्णु की पूजा करके उनसे जीवन के कल्याण की कामना करते हैं।