लखन शर्मा @ पल पल राजस्थान

भारत के हर हिन्दू परिवार के दिल में एक सपना पलता है—जीवन के अंतिम पड़ाव से पहले चारधाम की यात्रा कर पापों का प्रायश्चित करना, मोक्ष की ओर कदम बढ़ाना। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री—इन चार धामों की यात्रा केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और आत्मा की शुद्धि का पथ है। लेकिन 2025 की यह यात्रा श्रद्धा और विनाश का ऐसा संगम बनकर उभरी, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
इस साल की चारधाम यात्रा ने जितनी श्रद्धा देखी, उतना ही मातम भी।
कहीं हेलीकॉप्टर आसमान से गिरकर धधकती आग में तब्दील हो गया, तो कहीं यात्रियों से भरी गाड़ी पहाड़ी मोड़ पर फिसलकर खाई में समा गई। कई जगह भारी बारिश के कारण नदी-नालों ने रौद्र रूप धारण कर लिया और यात्रियों को अपने साथ बहा ले गई। कई जगह पहाड़ दरकते देखे गए, जैसे प्रकृति खुद इस साल की यात्रा से असहज हो उठी हो।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने सभी को हिला दिया—चारधाम जा रहे एक परिवार की गाड़ी गहरी खाई में जा गिरी। 7 लोगों का पूरा परिवार पल भर में खत्म हो गया। सिर्फ गूंजती रह गईं वो चीखें, जिनका जवाब अब किसी के पास नहीं है। एक माँ का अंतिम व्हाट्सएप मैसेज—“बस दर्शन कर लें, फिर सब ठीक हो जाएगा…”—आज भी उसका बेटा फोन में पढ़कर रो देता है।
और तो और, कई यात्रियों की लाशें आज तक नहीं मिल सकी हैं। गंगा की लहरों में बहे वो लोग अब कभी वापस नहीं लौटेंगे, सिर्फ उनकी चप्पलें, कुछ फोटो और अधजले पहचान पत्र रह गए हैं। पहाड़ों के बीच गूंजती रुदन की आवाजें और हरिद्वार से लेकर केदारनाथ तक बिछड़े परिजनों की तलाश करते चेहरे इस यात्रा की एक दूसरी, डरावनी तस्वीर बनकर उभरे हैं।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन भयावह हादसों के बावजूद श्रद्धालुओं के हौसले में कोई कमी नहीं आई है। लोगों की आंखों में आज भी चारधाम की छवि है—वो मानते हैं कि “जो होगा, भगवान की मर्जी से होगा।”
चारधाम यात्रा एक बार फिर साबित कर रही है कि भारत में श्रद्धा सिर्फ शब्द नहीं, बलिदान है।
यह आस्था की ऐसी आग है जो मौत के साए में भी जलती रहती है।
शायद यही कारण है कि हर रोज़ नई जानें गंवाने के बावजूद हजारों लोग अब भी बढ़ते जा रहे हैं उन रास्तों की ओर…
जहाँ मोक्ष की तलाश है,
जहाँ हर कदम पर भगवान हैं,
और शायद… मौत भी।
“चारधाम सिर्फ यात्रा नहीं… ये आस्था की अग्निपरीक्षा है।”