45 साल पुराने विवाद को ग्रामीणों ने चुटकियों में सुलझाया, बुलडोजर से पहले गरजा जन-आक्रोश

रायपुर/मोखुंदा: जब सरकारी तंत्र फाइलों के बोझ तले दबकर सुस्त पड़ जाता है और सिस्टम लाचार नजर आता है, तब जनता की एकजुटता ही बड़ा बदलाव लाती है। राजसमंद और भीलवाड़ा जिले की सीमा पर बसे मोखुंदा गांव में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला, जहां ग्रामीणों ने 45 साल से चले आ रहे राजस्व विवाद और अवैध कब्जे को सामूहिक शक्ति के दम पर उखाड़ फेंका। जिस सहकारी समिति की जमीन पर सालों से रसूखदारों का ‘कब्जा’ था और प्रशासन सिर्फ जांच-जांच का खेल खेल रहा था, वहां गांव वालों ने खुद कमान संभाली और महज कुछ घंटों में पूरी चारदीवारी को अतिक्रमण मुक्त करा दिया।
दरअसल, मोखुंदा सहकारी समिति के परिसर में 16 लाख रुपए की लागत से एक नया गोदाम बनना था, लेकिन अवैध रूप से खड़ी कारों, ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और थ्रेसर मशीनों ने विकास के पहियों को रोक रखा था। तहसीलदार की जांच के आदेश तो हुए, लेकिन धरातल पर हलचल नहीं दिखी। ऐसे में गांव के युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक ने ठान लिया कि अब और इंतजार नहीं होगा। सैकड़ों की संख्या में जुटे ग्रामीणों ने एक सुर में हुंकार भरी और अतिक्रमणकारियों के सामान को वहां से खदेड़ दिया। कब्जा हटते ही ग्रामीणों ने न केवल जमीन साफ की, बल्कि उसी वक्त विधिवत तरीके से नींव का मुहूर्त कर निर्माण कार्य भी शुरू करवा दिया, जिसने प्रशासन की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस ऐतिहासिक कदम के दौरान सहकारी समिति के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश जैन और पूर्व जनप्रतिनिधि गोपाल सोनी सहित मानसिंहपुरा, मांडका खेड़ा और तेली खेड़ा जैसे राजस्व ग्रामों के सैकड़ों लोग मौजूद रहे। ग्रामीणों ने दो टूक शब्दों में प्रशासन को चेतावनी दी है कि वे अब 45 साल पुराने सीमा विवाद का स्थायी समाधान चाहते हैं। यह घटना इस बात की गवाह है कि अगर गांव के लोग ठान लें, तो सिस्टम की थकावट को दूर कर विकास की इबारत लिखी जा सकती है। मोखुंदा के इस ‘जन-बुलडोजर’ की चर्चा अब पूरे इलाके में है, जिसने अवैध कब्जा करने वालों के हौसले पस्त कर दिए हैं।
