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जयपुर। देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव से निर्दलीय प्रत्याशी रहे नरेश मीणा को आज जयपुर महानगर प्रथम की अदालत ने बड़ी राहत दी। करीब 20 साल पुराने राजकार्य में बाधा पहुंचाने के मामले में अदालत ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है।
जज खुशबू परिहार ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस इस मामले में कोई भी स्वतंत्र गवाह पेश नहीं कर सकी। वहीं जिस कॉन्स्टेबल को चोट लगी थी, वो भी ट्रायल के दौरान गवाही देने कोर्ट नहीं पहुंचा।
मामला है 5 अगस्त 2004 का, जब जयपुर यूनिवर्सिटी में ‘घूमर कार्यक्रम’ के दौरान कथित रूप से नरेश मीणा और उनके साथियों ने स्टेज पर जबरन चढ़ने की कोशिश की। पुलिस ने उन्हें रोका, लेकिन आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उकसाया और उसी दौरान एक पत्थर ड्यूटी पर तैनात कॉन्स्टेबल की आंख के पास लग गया, जिससे वह घायल हो गया था।
इस घटना को लेकर गांधी नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन अब कोर्ट ने साफ कर दिया कि गवाहों की कमी, मेडिकल रिपोर्ट और मौके के नक्शे की अनुपस्थिति के चलते अभियोजन आरोप साबित नहीं कर सका।
पुलिस ने केवल पुलिसकर्मियों को ही गवाह बनाया। न ही घायल का मेडिकल कराया गया और न ही रोजनामचे में कोई प्रविष्टि की गई। ऐसे में यह मुकदमा टिक नहीं सकता।

हालांकि यह ज़रूर ध्यान देने योग्य है कि नरेश मीणा वर्तमान में अन्य मामलों में जेल में बंद हैं। देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान एसडीएम को थप्पड़ मारने के केस में हाईकोर्ट से उनकी जमानत याचिका खारिज हो चुकी है।
कोर्ट का कहना है कि आरोपी ने चुनाव प्रक्रिया में बाधा डाली, भीड़ को सोशल मीडिया के जरिए उकसाया और हिंसा को अंजाम दिया, ऐसे में जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता।
जहाँ एक ओर नरेश मीणा को पुराने केस से राहत मिली है, वहीं चुनाव से जुड़ी हिंसा के मामलों में उन्हें अभी न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना होगा।