पल पल राजस्थान – विकास टाक
अजमेर के छोटे से गांव भांवता की सोनू कंवर राठौड़ की शादी महज 12 साल की उम्र में कर दी गई थी। कम उम्र में ही वे तीन बच्चियों की मां बन गईं। बाल विवाह की कड़वी सच्चाई को झेलने के बाद उन्होंने ठान लिया कि अब किसी और लड़की की जिंदगी इस तरह बर्बाद नहीं होने देंगी। सोनू अब अपने गांव और आसपास के इलाकों में बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रही हैं। उन्होंने अब तक कई नाबालिग लड़कियों की शादी रुकवाई और उन्हें शिक्षा की ओर प्रेरित किया। उनकी ये पहल समाज में मिसाल बन गई है, जिससे कई बच्चियों का भविष्य संवर रहा है।
आज से 15 साल पहले जो अन्याय मेरे साथ हुआ वो और किसी बेटी के साथ न हो, इस संकल्प को सिद्धि में बदलने के लिए सोनू कंवर राठौड़ ने जिस समर्पण से मेहनत की, वह आज हर किसी को प्रेरित कर रही है। आज वो 28 वर्ष की हैं। कानों के पीछे पल्लू को अच्छी तरह से बांधे, कलाइयों पर रंग-बिरंगी चूड़ियां पहने राजस्थान के अजमेर गांव में स्कूटी चलाती सोनू की पैनी निगाहें बाल विवाह जैसे सामाजिक अपराध के खात्मे के लिए हमेशा सतर्क रहती हैं। उनका जीवन इस बात की गवाही है कि अटल इरादों से कदम बढ़ाएं तो कारवां खुद ब खुद बन जाएगा।
सोनू का जीवन हमेशा से ऐसा नहीं था। आज वो बाल विवाह के खिलाफ एक ऐसी आवाज हैं जिसे अनसुना करना मुमकिन नहीं है। बाल विवाह की शिकार सोनू का जीवन भी अन्य बच्चों की तरह दुर्व्यवहार, निराशा और भय में दबकर समाप्त हो सकता था। लेकिन सोनू ने ठान लिया कि जिस 12 साल की खेलने की उम्र में उसे बाल विवाह की बलि चढ़ा दिया गया, उसे ही अब जड़ मूल से समाप्त करना है।
एक दिन हंसती खेलती सोनू को पता चला कि जिस दिन बड़ी बहन की शादी है, उसी दिन उसके पिता ने उसकी भी शादी करने का फैसला किया। इतनी कम उम्र में उसकी शादी कोई अपवाद नहीं बल्कि उसके गांव की परंपरा का हिस्सा थी। इसलिए किसी ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि पढ़ने और खेलने की उम्र में आखिर बाल विवाह क्यों?
उस दिन को याद करते हुए सोनू कहती है, “जब मुझे बताया गया कि मेरी शादी हो रही है तो मैं बिल्कुल अनजान थी क्योंकि 12 साल की बच्ची शादी या पति जैसे शब्दों के मायने ही नहीं समझती। मेरे पास सपने थे लेकिन कोई मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था।” परिवार में जश्न और संगीत के शोर में सोनू के विरोध की आवाजें दब गईं। काबिले गौर ये कि उस दिन सोनू अकेली बच्ची नहीं थी जिसका बाल विवाह हुआ था। उसके पति लक्ष्मण सिंह भी शादी के समय नाबालिग थे। इसलिए अपने समुदाय से बाल विवाह को समाप्त करने की लड़ाई में सोनू के साथ लक्ष्मण भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
सोनू गर्व से अपने पति लक्ष्मण की तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं, “वह सिर्फ 18 साल का था यानी हम दोनों के साथ अन्याय हुआ क्योंकि हम दोनों ने बाल विवाह की कठिनाइयों को एक साथ झेला। हम जानते हैं कि बाल विवाह बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है।” शादी के बाद, सोनू अगले कुछ सालों तक अपने माता-पिता के साथ रही और पढ़ाई जारी रखी फिर उसे अपने पति के साथ रहने के लिए भेज दिया गया। लगभग 17 साल की उम्र में उसने एक साथ तीन बच्चों को जन्म दिया। सोनू ने कहा, “जब मैंने और मेरे पति ने अपनी तीन बेटियों का चेहरा देखा तो उसी समय संकल्प किया कि हम बच्चों के अधिकारों की रक्षा करेंगे जिससे मेरी तरह इनकी किस्मत में बाल विवाह की लकीर न बने। मैंने अपनी तीनों बेटियों को पालने में बहुत पीड़ा और संघर्षों का सामना किया लेकिन इसके साथ ही बाल विवाह के खिलाफ लड़ने का मेरा संकल्प और भी मजबूत होता गया।”
सोनू की जिजीविषा ने हौसलों को उड़ान दी और उसने घर पर ही पड़ोस की लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनके एक मित्र ने राजस्थान महिला कल्याण मंडल (आरएमकेएम) के बारे में बताया जो एक गैरसरकारी संगठन है। यह बाल अधिकारों की रक्षा करने के साथ-साथ बाल विवाह के खिलाफ भी काम करता है। आरएमकेएम, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (जेआरसी) का सहयोगी संगठन है। जेआरसी देशभर के 416 जिलों में 250 से अधिक गैर सरकारी संगठनों का एक नेटवर्क है जो बाल विवाह के खात्मे के लिए ‘रोकथाम, संरक्षण और अभियोजन’ की रणनीति पर काम कर रहा है।
सोनू ने नई दिल्ली में जेआरसी से संपर्क कर बाल विवाह को समाप्त करने के अभियान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने कहा कि जब मैंने सुना कि यह नेटवर्क बाल विवाह को समाप्त करने के लिए काम करता है तो मुझे लगा कि जीवन में अपना उद्देश्य मिल गया है। उसके दृढ़ विश्वास से प्रभावित होकर, संगठन ने उसे अपने साथ जोड़ लिया। तब से सोनू गांवों और स्कूलों में लगातार दौरे कर लोगों को बाल विवाह के दुष्परिणामों और इस बाबत कानूनी पहलुओं के बारे में लोगों को जागरूक कर रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में एक अविस्मरणीय घटना को याद करते हुए वह कहती हैं, “एक दिन पास के गांव से गुजरते हुए मैंने एक बारात देखी। मैंने देखा कि एक छोटा सा लड़का, जिसकी उम्र बमुश्किल 10 साल थी, घोड़े पर सवार था। मुझे यकीन हो गया कि यह बाल विवाह है।“ सोनू ने एनजीओ के सदस्यों को सूचना दी और बारात का लगभग दो घंटे तक पीछा किया। इस दौरान बारातियों ने जब उसे पीछा करते हुए देखा तो बचाव के लिए उन्होंने बस के अंदर ही रोजमर्रा के कपड़े पहन लिए। उन्होंने मुझे धमकाया और वापस जाने को कहा लेकिन उन्हें कहां पता था कि डर तो 15 साल पहले ही बाल विवाह को समाप्त करने के जुनून में बदल चुका है।
इस तरह लगभग 50 किमी तक पीछा करने के बाद, सोनू ने आरएमकेएम के सदस्यों के साथ मिलकर सफलतापूर्वक हस्तक्षेप कर उस बच्चे को बचा लिया। तब से लेकर आज तक वह दर्जन भर से भी बच्चों का बाल विवाह रुकवा चुकी है। उस दिन की चुनौतियों और बच्चे को बचाने की घटना को याद कर सोनू की आंखें चमक उठती हैं। सोनू कहती हैं कि जिस दिन सभी लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगेंगे और छोटी उम्र में उन पर शादी के लिए दबाव नहीं डालेंगे, वह हम सभी के लिए सबसे अच्छा दिन होगा।