घूसखोर प्रिंसिपल को तीन साल की जेल

सीबीएसई मान्यता की ‘परफेक्ट रिपोर्ट’ के लिए वसूले थे एक लाख, कोर्ट ने सुनाया फैसला

उदयपुर. स्कूल को सीबीएसई की मान्यता दिलाने के नाम पर एक लाख रुपए की रिश्वत डकारने वाले केंद्रीय विद्यालय जावर माइंस के तत्कालीन प्रिंसिपल को आखिरकार अपने किए की सजा मिल गई है। उदयपुर की विशिष्ट न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संख्या-2) की पीठासीन अधिकारी संदीप कौर ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आरोपी पूर्व प्रिंसिपल को तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। साथ ही उस पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। यह मामला शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार की उस काली सच्चाई को उजागर करता है जहां मान्यता जैसी जरूरी प्रक्रिया को भी कमाई का जरिया बना लिया गया था।

मामले की हकीकत यह थी कि राजपुरा दरीबा स्थित दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) हिंदुस्तान जिंक सीनियर सेकेंडरी स्कूल को सीबीएसई से स्थाई मान्यता की दरकार थी। सीबीएसई ने स्कूल के इंस्पेक्शन और रिपोर्ट के लिए एक कमेटी गठित की थी, जिसमें केंद्रीय विद्यालय जावर माइंस के तत्कालीन प्रिंसिपल असलम परवेज (निवासी झालावाड़) को भी सदस्य बनाया गया था। इसी का फायदा उठाते हुए असलम परवेज ने डीएवी स्कूल के प्रिंसिपल के.के. नारायणन पर दबाव बनाया। उसने स्कूल की ‘परफेक्ट रिपोर्ट’ तैयार करने की एवज में तीन लाख रुपए की भारी-भरकम रिश्वत की मांग कर डाली। परवेज ने धौंस जमाते हुए यह भी कहा था कि इस रकम का एक हिस्सा सीबीएसई के रीजनल ऑफिस में भी भेजना पड़ेगा।

भ्रष्टाचार की इस मांग से परेशान होकर फरियादी प्रिंसिपल नारायणन ने 4 मई 2011 को उदयपुर एसीबी का दरवाजा खटखटाया। शिकायत के सत्यापन के बाद एसीबी की टीम ने जाल बिछाया और असलम परवेज को एक लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया था। लंबी चली कानूनी प्रक्रिया के दौरान विशिष्ट लोक अभियोजक महेंद्र कुमार ने अभियोजन पक्ष की ओर से पूरी मजबूती के साथ पैरवी की। अदालत में 20 गवाहों के बयान और 38 महत्वपूर्ण दस्तावेज पेश किए गए, जिन्होंने आरोपी के गुनाह को साबित कर दिया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बुधवार को कोर्ट ने असलम परवेज को दोषी करार देते हुए जेल भेजने का आदेश जारी कर दिया।

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